चौदह सौ साल बीत जाने के बाद भी दुनिया के कोने-कोने में रसूल अल्लाह के नवासों का गम मनाने में कोई कमी नहीं हुई, चांद रात से लेकर दो महीने आठ दिन इमाम हुसैन की शहादत का ज़िक्र होता है। मोहर्रम की पांच तारीख़ पर वरिष्ठ पत्रकार एवं साइबर जर्नलिस्ट एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष शहंशाह आब्दी के आब्दी मंज़िल से इमाम हुसैन के छः माह के बेटे जो करबला में सब से कम उम्र के थे।हज़रत अली असगर का झूला उठा और गाँव का गश्त करते हुवे वापस मरहूम प्रधान मोहम्मद जलीस आब्दी के आवास पहुंचा। इस दौरान हुई मजलिस में हजारों की संख्या में हुसैन के चाहने वालों ने इमाम हुसैन को नम आंखों से पुरसा दिया और मातम किया। हुसैन जिंदाबाद के नारों से गूंज उठा बहेरा सादात जहां आजादरों ने यज़ीद मुर्दाबाद के नारे लगाते हुवे यज़ीद पर लानत भेजी। जिला अंबेडकर नगर के मौलाना अज़ीम रिज़वी ने करबला पर रौशनी डालते हुवे जिक्र किया कि करबला की जंग में इमाम हुसैन ने यज़ीद के अत्याचारों का डट कर मुकाबला किया और ऐसी मिसाल पेश की जिसे दुनिया कयामत तक नहीं भुला सकती। रवींद्र नाथ टैगोर कहते हैं कि इंसाफ और सच्चाई को ज़िंदा रखने के लिए फौजों या हथियारों की जरूरत नहीं होती है, कुर्बानियां दे कर भी जीत हासिल की जा सकती है जैसे इमाम हुसैन ने करबला में किया। वहीं डाक्टर राजेंद्र प्रसाद कहते हैं कि इमाम हुसैन का बलिदान केवल एक देश या राष्ट्र तक सीमित नहीं है बल्कि ये सभी मानव जाति के भाई चारे की वंशानुगत स्थित है। आप को बताते चलें की बहेरा सादात की दसवीं का जुलूस खागा तहसील में सबसे बड़ा होता है। इस जुलूस में आस पास के दो दर्जन से अधिक ग्रामवासी शामिल होते हैं, इस जुलूस में हजारों की भीड़ इकठ्ठा होती है जिसमें काफी तादाद में हिन्दु भाई भी शिरकत करते हैं। ये जुलूस नौबस्ता रोड से होता हुवा बहेरा चौकी जाता है वहां पर मौलाना भाईचारा एकता पर तक़रीर करते हैं फिर मातम करते हुवे एक किलो मीटर नाज़ स्कूल करबला पहुंच कर बूढ़नपुर के जुलूस का एक बड़ा मिलाप होता है जिसे देखने के लिए जन सैलाब उमड़ पड़ता है। इस झूले के बाद छह मुहर्रम को जरी मुबारक उठाई जाती है जिसमें भी जनसैलाब उमड़ता है। इस दौरान पुलिस व्यवस्था दुरुस्त रही जबकि स्थानीय लोगों का कहना रहा है कि बिजली व्यवस्था सही नहीं रही है। कर्बला के वह आंकड़े जो शायद आपको पता न हो यज़ीद की बैअत से इन्कार से लेकर आशूर (10 मुहर्रम) तक इमाम हुसैन का आंदोलन 175 दिनों तक चला 12 दिन मदीने में, 4 महीने 10 दिन मक्के में, 23 दिन मक्के और कर्बला के रास्ते में, और 8 दिन कर्बला में कूफे से इमाम हुसैन को 18000 खत (कुछ रिवायतों में बोरियों की तादाद में खत) लिखे गये थे। कूफे में इमाम हुसैन के दूत मुस्लिम बिन अक़ील की बैअत करने वालों की तादाद अलग – अलग रिवायतों में 18000 या 25000 या 40000 बतायी गयी है।

अबू तालिब की नस्ल से कर्बला में शहीद होने वालों की संख्या 30 है, 17 का नाम “ज़ेयारत नाहिया” में आया है जबकि 13 का नहीं इमाम हुसैन की मदद की वजह से शहीद होने वाले कूफियों की संख्या 138 थी जिनमें से 15 ग़ुलाम थे। शहादत के वक्त इमाम हुसैन की उम्र 57 साल थी। शहादत के बाद उनके बदन पर भाले के 33 घाव और तलवार के 34 घाव थे साथ ही तीरों की संख्या अनगिनत बताया गया है, इस तरह से शहादत तक इमाम हुसैन के बदन पर कुल 1900 तक घाव थे। इमाम हुसैन की लाश पर दस घुड़सवारों ने घोड़े दौड़ाए थे। कूफे से इमाम हुसैन के खिलाफ जंग के लिए कर्बला जाने वाले सिपाहियों की तादाद 33 हज़ार थी हालांकि कुछ लोगों ने संख्या और अधिक बतायी है। दसवीं मुहर्रम को इमाम हुसैन ने 10 शहीदों के लिए मर्सिया पढ़ा, उनके बारे में बात की और दुआ की – हज़रत अली अकबर, हज़रत अब्बास, हज़रत क़ासिम, अब्दुल्लाह इब्ने हसन, अब्दुल्लाह, मुस्लिम बिन औसजा, हबीब इब्ने मज़ाहिर, हुर बिन यज़ीद रियाही, ज़ुहैर बिन क़ैन और जौन पर इमाम हुसैन कर्बला के 7 शहीदों के सिरहाने पैदल और दौड़ते हुए गये, जोकि मुस्लिम बिन औसजा, हुर, वासेह रूमी, जौन, हज़रत अब्बास, हज़रत अली अकबर और हज़रत क़ासिम थे। दसवी मुहर्रम को यज़ीद के सिपाहियों ने तीन शहीदों के सिर काट कर इमाम हुसैन की तरफ फेंका – अब्दुल्लाह बिन उमैर कलबी, उमर बिन जनादा, आस बिन अबी शबीब शाकेरी पर दसवी मुहर्रम को 3 लोगों को यज़ीदी सिपाहियों ने टुकड़े – टुकड़े कर दिया – हज़रत अली अकबर, हज़रत अब्बास और अब्दुर्रहमान बिन उमैर को कर्बला के 9 शहीदों की मांओं ने अपनी आंख से अपने बच्चों को शहीद होते देखा कर्बला में 5 नाबालिग बच्चों को शहीद किया गया – अब्दुल्लाह इब्ने हुसैन, अब्दुल्लाह बिन हसन, मुहम्मद बिन अबी सईद बिन अकील, कासिम बिन हसन, अम्र बिन जुनादा अन्सारी को कर्बला में शहीद होने वाले 5 लोग पैग़म्बरे इस्लाम के सहाबी थे – अनस बिन हर्स काहेली, हबीब इब्ने मज़ाहिर, मुस्लिम बिन औसजा, हानी बिन उरवा और अब्दुल्लाह बिन बक़तर उमैरी। दसवी मुहर्रम को इमाम हुसैन के 2 साथियों को गिरफ्तार करने के बाद शहीद किया गया – सवार बिन मुनइम और मौक़े बिन समामा सैदावी। कर्बला के 7 शहीद अपने बाप के सामने शहीद हुए। कर्बला में 5 महिलाओं ने खैमों से निकल कर दुश्मनों पर हमला किया और उन्हें बुरा भला कहा।इमाम हुसैन के हाथों मारे जाने वाले यज़ीदी सिपाहियों की तादाद 1800 से 1950 तक बतायी गयी है
नोट:- पूरे महीने का विज्ञापन बुक कराए कम कीमत में सम्पर्क करें। 9044684414

By