उत्तर प्रदेश फतेहपुर जिले की 28 वर्षीय रागिनी (काल्पनिक नाम) के ससुराल वालों को जब पता चला कि रागिनी को क्षय रोग है तो सास का पारा आसमान चढ़ गया। उन्होंने बहु को तत्काल मायके जाने का फरमान सुना दिया। हालांकि बेटे के समझाने पर सास की सोच बदली और नियमित दवाओं के सेवन से रागिनी स्वस्थ हो गई। रागिनी तो सिर्फ उदाहरण मात्र है। वर्ष 22 के दौरान जिले में 85 लोग लिम्फ नोड्स टीबी ग्रस्त थे। इसमें से 65 मरीज एकदम ठीक हो चुके हैं जबकि 20 का इलाज जारी है। रागिनी ने बताया कि उसको वर्ष 2021 में खांसी की शिकायत हुई। घर पर दवाओं से जब आराम नहीं मिला तो एक निजी डॉक्टर को दिखाया। 4-5 दिन के उपचार के बाद खांसी बंद हो गई। इसके बाद रागिनी अपनी दवा बंद कर अपनी नियमित दिनचर्या में वापस आ गई। कुछ समय बाद उसे गले में दर्द और सूजन की शिकायत हुई तो डॉक्टर को दिखाया। जांच के बाद डॉक्टर ने बताया कि यह टीबी के शुरुआती लक्षण हैं। उपचार के बाद भी बुखार और कमजोरी की समस्या बढ़ती गई। फिर जांच में रागिनी को प्रथम स्टेज की गले में लिम्फ नोड्स टीबी की पुष्टि हुई। तो उपचार के लिए टीबी हास्पिटल पहुंची। यहां पर लगभग नौ महीने तक रागिनी का इलाज चला। नियमित दवा के सेवन से रागिनी पूरी तरह ठीक हो गई। इलाज के दौरान रागिनी को पोषण योजना का भी लाभ दिलाया गया। रागिनी और उसके पति ने बताया कि डॉक्टर ने इलाज शुरू करने के पहले ही बताया था कि लिम्फ नोड्स संक्रामक बीमारी नहीं है। यह एक से दूसरे को नहीं होती है। इलाज बीच में छोड़ना खतरनाक सीएमओ सुनील भारती ने बताया कि जो मरीज अपने इलाज में लापरवाही बरतते हैं। यानि ट्रीटमेंट अधूरा छोड देते हैं। उन्हें दोबारा टीबी होने का खतरा बना रहता है।
खानपान और पोषण का विशेष ध्यान देना टीबी से उपचार का अहम हिस्सा है। डीटीओ डॉ सहाबुददीन ने बताया कि टीबी रोगी को सरकार हर माह 500 रुपये डीबीटी डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के रूप में तब तक देती है। जब तक उसका उपचार चलता है। यह राशि पोषण युक्त आहार लेने के लिए दी जाती है। लिम्फ नोडस की टीबी में कई बार गांठ के आकार बडे होकर फट जाते हैं। लिम्फ नोड्स टयूबरक्लोसिस में बायोप्सी से ही सटीक जांच की जाती सकती है। रोग बिगडने पर सर्जरी ही एक मात्र उपचार होता हैं। लक्षण :- टीबी अस्पताल के एसटीएस अजीत सिंह ने बताया कि किसी भी अंग में गांठ के रूप् में होने वाली टीबी को लिम्फ नोड्स की टीबी या गांठ की टीबी कहते हैं। इसमें बुखार आना, वजन कम होना और भूख कम लगना जैसे लक्षण नजर आते हैं। इसमें सामान्य तौर पर खांसी या बलगम की शिकायत नहीं होती है। इस करण टीबी का पता नहीं चल पाता है। फेफड़े या लिम्फ नोड की टीबी का इलाज आमतौर पर एक जैसा ही होता है। इसमें रोगी को 6 या 12 महीने का ट्रीटमेंट दिया जाता है।
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