उत्तर प्रदेश फतेहपुर जिले में माहे मुहर्रम का चाँद नज़र आते ही यहाँ मुस्लिम समुदाय कर्बला में शहीद हुए इमाम हसन हुसैन की यादो को ताज़ा करने के लिए उनकी याद में अपने अपने अंदाज में तजियेदारी करता है। यहाँ मुख्य रूप से कुछ खाश ताजिये है। जैसे चाँदूमियाँ का ताजिया, टीन का ताजिया, अंडे पर रखा हुआ ताजिया, सब मिलाकर यहाँ छोटे बड़े लगभग100 जगहों पर तजियेदारी का नज़ारा देखने को मिलता है। उसके साथ साथ आग पर चलते हुए मातम, जंजीर का मातम, छुरी का मातम जिसको देखने के लिए जनपद से लेकर गैर जनपद के लोग यहाँ देखने आते हैं। यहाँ खाने पीने की दुकानों के साथ सभी तरह की दुकानें सजी रहती है जिसके चलते पूरा शहर एक मेले की शक्ल अख्तियार कर लेता है।

वैसे तो दुनिया के कोने कोने में जहाँ भी मुस्लिम बसा है माहे मोहर्रम में इमामे हुसैन की शहादत को याद करता है। मगर उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले में माहे मुहर्रम का चाँद नजर आते ही जगह जगह ताजिए, अलम, लंगर ख्वानी, और पलंग उठा कर शहीदाने कर्बला की याद को तरो ताज़ा करने में कोई कोर कसर नही रखते तो वही दूसरी तरफ किसी भी अप्रिय घटना को रोकने के लिए पुलिस के जवानो की हर जगह मुस्तैदी भी देखने को मिलती है। मजहबे इस्लाम के लिए हजरत इमाम हुसैन ने अपने आप को कुर्बान कर दिया यजीदी लाहो लस्कर ने 6 माह के मासूम अली असगर को भी नहीं बक्सा जिस्म को तीरों से छलनी कर दिया जिस गर्दन को बचपन में नाना जान ने चूम कर कहा था मेरे लख्ते जिगर तुम को कर्बला में एक दिन अपनी गर्दन कटानी हैं।

उस वक्त की नाना जान की कही बात को हजरत इमाम हुसैन ने पूरा किया। खुश्क होंठ प्यास की शिददत शहीदो के लबो तक एक कतरा पानी की बूंद भी मयस्सर न हो सकी क्यूँ की यही थी मंजूरे खुदा वन्दी। शहीदो के खून की खुसबू कर्बला की मिटटी से आज भी आलमे इस्लाम महसूस कर उनकी याद में हर वर्ष माहे मोहर्रम के महीने में यादे हुसैन के रूप में मानता है। यादे हुसैन के मनने वालो की दीवानगी का आलम ही निराला हैं हुसैन की दीवानगी में अपने आपको पिरो देते हैं। अकिदत्त मंदों की दीवानगी का आलम ताजियादारी के शक्ल में देखने को मिलता हैं। यहाँ पर हर वर्ग के लोग गमे हुसैन मनाने में शरीक होते हैं खास कर चाँदुमियाँ के इमाम बाड़े पर सभी धर्म की महिला व पुरुष मुरादे मांगने आते है।

वही काजिये सहर कारी फरीद उददीन ने बताया माहे मुहर्रमुल हराम का महीना एक तारिख से शुरू होकर 11 तारिख को चाँदूमियां का ताजिया इमाम बाड़े पर पहुंचने के बाद समापन होता है। वैसे इस महीने के शुरू होने के बाद मुस्लिम समाज के लोग ख़ुशी ख़ुशी अल्लाह की इबादत में लग जाते है। बहोत ही खुशुशियत के साथ आसुरा का रोज़ा रखकर अल्लाह की बंदगी करते है। हम चाहते है जिस तरह इस महीने में अल्लाह की इबादत की है उसी तरह पुरे साल इबादत करे। और किसी तरह की अफवाहों पर ध्यान न देकर देश में अम्नो अमन कायम करे।

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