उत्तर प्रदेश फतेहपुर जिले के बहेरा सादात गांव में चांद रात से गमे हुसैन पर घर-घर मजलिसों का सिलसिला जारी है। करबला के शहीदों पर रौशनी डालने के लिए अम्बेडकर नगर के मौलाना सय्यद अज़ीम रिज़वी मजलिस पढ़ कर कर्बला के शहीदों को पुर्सा पेश कर रहे हैं। मोहर्रम की सातवीं तारीख को बड़े इमाम बाड़े में तबरेज़ आब्दी द्वारा मजलिस का आगाज़ हुआ। बाद मंजिली अलम का जुलूस निकला जो भ्रमण करते हुवे आब्दी मंज़िल पहुंचा जहां पर वरिष्ठ पत्रकार एवं साइबर जर्नलिस्ट एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष शहंशाह आब्दी के आवास पर मौलाना ने मजलिस को खिताब करते हुवे बताया कि हम मोहर्रम पर आज़ादी क्यूं मनाते हैं और सदियां गुज़र जाने के बाद भी कर्बला का ज़िक्र आज तक जिंदा क्यूं है, इस पर रोशनी डाली गई। यह घटना 570 ई. की है जब अरब की सरज़मीं पर दरिन्दगी अपनी चरम सीमा पर थी। तब ईश्वर ने एक संदेशवाहक (पैग़म्बर) भेजा जिसने अरब की ज़मीन को दरिन्दगी से निजात दिलाई और निराकार ईश्वर (अल्लाह) का परिचय देने के बाद मनुष्यों को ईश्वर का संदेश पहुंचाया जो कि अल्लाह का ‘दीन’ है। इसको इस्लाम का नाम दिया गया और ‘दीन’ केवल मुसलमानों के लिए नहीं आया, वह सभी के लिए था क्योंकि बुनियादी रूप से दीन (इस्लाम) में अच्छे कार्यों का मार्गदर्शन किया गया है और बुरे कार्यों से बचने और रोकने के तरीके बताये गये हैं। जब दीन (इस्लाम) को मोहम्मद (स० अ०) साहब ने फैलाना शुरू किया तब अरब के लगभग सभी कबीलों ने मोहम्मद (स० अ०) की बात मानकर अल्लाह का दीन कबूल कर लिया। मोहम्मद (स० अ०) के साथ मिले कबीलों की तादाद देखकर उस समय मोहम्मद (स० अ०) के दुश्मन भी मोहम्मद साहब के साथ आ मिले (कुछ दिखावे में और कुछ ने डर से) लेकिन वह मोहम्मद (स० अ०) से अपने दिलों में दुश्मनी रखे रहे और ये दुश्मनी उनके नवासों से निकाली गई। रसूल अल्लाह के नवासों को सिर्फ इसलिए शहीद कर दिया क्यूंकि इमाम हुसैन हक़ पर थे। इमाम हुसैन हराम कामों से रोकना चाहते थें। करबला में जो जंग थी वो हक़ और बातिल की जंग थी। एक तरफ लाखों की फ़ौज थी तो दूसरी तरफ़ इमाम हुसैन के बहत्तर साथी थे फिर भी यज़ीद हार गया और हुसैन जीत गये। आप को बताते चलें की बहेरा सादात में 6 तारीख़ यानी दस मोहर्रम पर होने वाला एक बड़ा जुलूस दिन में दो बजे नौबस्ता रोड होते हुवे बहेरा चौकी पहुंचेगा जहां पर मातम के साथ ही मौलाना द्वारा भाई चारे पर तक़रीर होगी। इस जुलूस में हज़ारों की संख्या में हुसैन को चाहने वाले मौजूद होंगे जिसमें हमारे हिन्दू भाई भी शामिल हो कर इमाम हुसैन को करबला तक पहुंचाएंगे। ये करबला नाज़ स्कूल के पास स्थित है, वहीं पर बूढ़नपुर और बहेरा सादात के जुलूस का मिलाप भी होगा।
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