उत्तर प्रदेश फतेहपुर बिंदकी कोतवाली क्षेत्र के खजुहा बागबादशाही क्षेत्र में आयोजित दशहरा महोत्सव के दौरान इस वर्ष भी मंच पर नर्तकियों द्वारा फिल्मी गानों पर नृत्य प्रस्तुत किए जाने की चर्चाएं बनी हुई है। स्थानीय नागरिकों का कहना है कि ऐसे कार्यक्रमों की अनुमति सामान्यतः सांस्कृतिक कार्यक्रमों के रूप में दी जाती है। जिसका उद्देश्य भारतीय संस्कृति, परंपरा और लोककला को बढ़ावा देना होता है।परंतु, जब इन मंचों पर परंपरागत सांस्कृतिक प्रस्तुतियों की जगह फिल्मी गीतों पर आधुनिक नृत्य प्रस्तुत किए जाते हैं।तो इसका स्वरूप पूरी तरह बदल जाता है। इससे न केवल कार्यक्रम की मूल भावना प्रभावित होती है।बल्कि समाज में गलत संदेश भी जाता है। विशेषकर युवाओं और बच्चों के बीच।सांस्कृतिक कार्यक्रमों का मकसद समाज को जोड़ना। परंपरा को सहेजना और नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से परिचित कराना होता है।


ऐसे में यदि इन्हीं आयोजनों में मनोरंजन के नाम पर फिल्मी या आपत्तिजनक प्रस्तुतियां दिखाई जाती हैं।तो यह सामाजिक मर्यादा और सांस्कृतिक मूल्यों के विपरीत माना जाता है। स्थानीय नागरिकों का यह भी कहना है कि हर वर्ष ऐसे आयोजनों की अनुमति प्रशासन की ओर से दी जाती है।परंतु शर्तों के पालन को लेकर गंभीरता की कमी दिखाई देती है। अनुमति में स्पष्ट रूप से यह प्रावधान रहता है कि कार्यक्रम सांस्कृतिक और पारिवारिक दृष्टि से उपयुक्त हों, परंतु यदि इन शर्तों का पालन न हो, तो यह प्रशासन और आयोजकों दोनों के लिए आत्ममंथन का विषय है। समाज शास्त्रियों का मत है कि जब सार्वजनिक मंचों पर ऐसे कार्यक्रम बार-बार होते हैं । और उन पर कोई ठोस निगरानी नहीं होती।तो यह कहीं न कहीं सामाजिक मूल्यों के क्षरण का संकेत है। सांस्कृतिक मंचों को फिर से अपनी वास्तविकता लौटाने की आवश्यकता है । ताकि समाज में सच्ची संस्कृति, कला और आदर्शों का संदेश प्रसारित हो सके।
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