उत्तर प्रदेश फतेहपुर जिले की रामनगर कॉलोनी माधव उपदेश रथ द्वारा लगातार दूसरे वर्ष विशाल धनुष यज्ञ लीला का आयोजन किया गया। पूरी रात भक्तों ने धनुष यज्ञ की लीला का आनंद लिया। रामलीला कमेटी के अध्यक्ष राजकुमार तिवारी और कोषाध्यक्ष राहुल शर्मा तथा कमेटी के पदाधिकारी सक्षम सिंह मोनू सिंह.,हरिशंकर, लाला, बाल किशन ,कल्लू यादव ,और सुजीत तिवारी समेत अन्य सदस्यों ने लगातार दूसरे वर्ष सभी तैयारी पूरी कर लिया गया था। भगवान की आरती के साथ रामलीला का मंचन जनपद तथा दूसरे जनपद से आए हुए कलाकारों द्वारा बड़े ही सुंदर ढंग से कराया गया।

शनिवार शाम मंच में पूजन वंदना के बाद लीला की शुरुआत होती है। और मिथिला नरेश जनक द्वारा अपनी पुत्री सीता के स्वयंवर का आयोजन किया जाता है। और स्वयंवर में आने के लिए आसपास और दूर देश के राजाओं को निमंत्रण भेजा जाता है। गुरु विश्वामित्र के साथ राम और उनके छोटे भाई लक्ष्मण तथा अन्य राजा स्वयंवर में पहुंचते हैं। वही पेटू राजा को भी स्वयंवर का निमंत्रण मिलता है। पेटू राजा का मंचन देख कर दर्शक लोटपोट हो जाते हैं। मिथिला नगरी में रावण तथा बाणासुर का तीखा संवाद होता है। और हजारों की संख्या में उपस्थित भक्तों को वीर रस की प्राप्ति होती है। इसके बाद दूर दूर से आए राजा एक-एक करके धनुष को उठाने की कोशिश करते हैं। लेकिन कोई धनुष को हिला तक नहीं पाता है।

तभी राजा जनक विलाप करते हैं। और कहते हैं कि अब उनकी पुत्री का स्वयंवर नहीं हो पाएगा। भक्त करुण रस में डूब जाते हैं साथ ही राजा जनक कहते हैं कि लगता है धरती वीरों से खाली हो गई है। यह बात सुनकर लक्ष्मण को क्रोध आता है और वह राजा जनक से कहते हैं कि अगर उनके बड़े भाई राम और गुरु विश्वामित्र का आदेश हो जाए तो वह पूरी मिथिला नगरी को एक फूंक में उड़ा सकते हैं। तभी विश्वामित्र लक्ष्मण को शांत करते हैं और राम को आज्ञा देते हैं कि धनुष में प्रत्यंचा चढ़ा दें गुरु की आज्ञा पाकर भगवान राम जैसे ही धनुष में प्रत्यंचा चढ़ाते हैं।

धनुष दो खंडों में टूट जाता है। चारों ओर श्री राम के जयकारे लगते हैं जनक की पुत्री सीता सखियों के साथ आती है। और भगवान राम को वरमाला पहन आती है और भक्त राम और सीता की आरती उतारते हैं। उधर धनुष के टूटते ही आचार्य गोपाल जो परसराम की भूमिका में थे। उनकी तपस्या भंग हो जाती है और वह क्रोधित होकर पर्वत से सीधा हवा के वेग से मिथिला नगरी पहुंच जाते हैं जहां राजा जनक अपनी पुत्री के लिए आशीर्वाद मांगते हैं और उनका स्वागत करते हैं। आशीर्वाद देने के बाद भगवान परशुराम राजा जनक से धनुष तोड़ने वाले के बारे में पूछते हैं। लेकिन राजा जनक कुछ नहीं बताते हैं और डर जाते हैं तभी परशुराम से राम कहते हैं कि नाथ शंभू धनु भंज निहारा -होईया कोई एक दास तुम्हारा..परशुराम कहते हैं कि हम जितने भी भगवान शिव के धनुष को तोड़ा है।

वह सहस्त्रबाहु के समान मेरा दुश्मन है आगे कहते हैं कि धनुष तोड़ने वाला समाज से अलग हो जाए या समाज धनुष तोड़ने वाले से अलग हो जाएं नहीं तो सभी राजा मारे जाएंगे इसी बीच लक्ष्मण को क्रोध आ जाता है। और वह परशुराम से तीखा संवाद करने लगते हैं !लक्ष्मण और परशुराम संवाद सुबह लगभग 10 बजे तक चलता है। भक्त लक्ष्मण परशुराम संवाद सुनकर पूरी तरह से भक्ति में लीन हो जाते हैं। संवाद बढ़ता देख गुरु की आज्ञा पाकर राम परशुराम से अपने छोटे भाई लक्ष्मण की बातों के लिए क्षमा मांगते हैं इसी बीच परशुराम को आभास होता है कि राम साक्षात विष्णु का अवतार है। और वह राम लक्ष्मण और गुरु से क्षमा मांगते हुए आशीर्वाद देकर पर्वत के लिए निकल पड़ते हैं।
इधर भक्त जयकारे लगाते हैं। इस मौके पर शहर सहित अन्य गाँव के दर्शकों की भीड़ मौजूद रहीं।
नोट:- पूरे महीने का विज्ञापन बुक कराए कम कीमत में सम्पर्क करें। 9044684414

By