उत्तर प्रदेश फतेहपुर जिले की जिला पंचायत की सरकार को अपदस्थ करने का विपक्षी मंसूबा पूरा न हो सका विरोधियो को मुँह की खानी पड़ी। जिला पंचायत अध्यक्ष अभय प्रताप व उनके करीबियों ने अपनी सत्ता बचाने के लिए विपक्षी खेमे में ही सेंध लगाकर बागी सदस्यों में ही दूसरे गुट के सदस्यों को अपने पाले में शामिल करने में कामयाबी हासिल कर ली। जिला पंचायत अध्यक्ष अभय प्रताप सिंह पप्पू को अध्यक्ष पैड से हटाने के लिए विपक्षी गुटों ने बहुत नाकाम कोशिश की थी। जिला पंचायत अध्यक्ष अभय प्रताप सिंह को बाहर करने के लिए सत्ताधारी दलों से संबंध रखने वाले कई नेताओं की शह पर सियासत की गोटे सजाई गई थी। और अभय प्रताप सिंह की कार्यशैली से खिन्न एवं असंतुष्ट खेमे के सदस्यों को मिलाकर जिला पंचायत की 46 सदस्यीय सदन के 24 सदस्यों की नई कैबिनेट बनाकर अविश्वास के ज़रिए जिला पंचायत की कुर्सी हड़पने की पूरी तैयारी कर ली गयी थी।
विश्वस्त सूत्रों की माने तो इस पूरे खेल में जिले के सत्ताधारी दल के कई दिग्गजों का आशीर्वाद भी था। यह भी सही है कि अभय प्रताप सिंह को जिला पंचायत की राजनीति का मज़बूत खिलाड़ी माना जाता है। सपा सरकार के रहते पत्नी डॉ निवेदिता सिंह को जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर काबिज करवाकर अभय प्रताप पप्पू ने अपना लोहा मनवाते हुए इसे साबित भी किया था। जिला पंचायत सदस्यों के चुंनाव के बाद अध्यक्षी पद को लेकर भी अभय प्रताप सिंह के नाम पर कई नेताओं ने विरोध जताया था। अंत में भाजपा शीर्ष नेतृत्व से अपने नाम पर मोहर लगवाकर अभय प्रताप ने आलोचकों का मुंह बंद कर अपनी राजनैतिक मज़बूती एक बार फिर से साबित कर दिया था। जिला पंचायत की नई कैबिनेट के अस्तवित्व में आये एक वर्ष के अंदर सदस्यों के असंतोष की वजह जिला पंचायत अध्यक्ष की कार्यशैली को लेकर सदस्यों की नाराजगी रही है लेकिन सत्ताधारी दल की सरकार होने के बाद भी अध्यक्ष की कुर्सी हिल जाना कोई मामूली घटना नही थी। हाई वोल्टेज ड्रामे के बाद आखिकार सदस्यों ने अभय प्रताप गुट क़े साथ ही बने रहने का निर्णय लेकर विपक्षी दलों के मंसूबे को धराशाई कर दिया। जानकारों की माने तो जिला पंचायत अभय प्रताप सिंह की अध्यक्षी की कुर्सी बचाने में जिला पंचायत की राजनीति के दिग्गज महारथी एवं पूर्व डीसीबी चेयरमैन उदय प्रताप सिंह मुन्ना का अहम रोल भी माना जा रहा है। मौजूदा राजनीति में जिला पंचायत अध्यक्ष अभय प्रताप सिंह पप्पू ने अपनी कुर्सी बचाते हुए न सिर्फ अपना राजनैतिक कद बढ़ाने में कामयाब हुए हैं वही विपक्षी दलों का मंसूबा ध्वस्त कर सत्ता में शामिल अपने आलोचकों का मुंह भी बंद कर दिया है।