उत्तर प्रदेश फतेहपुर जिले में अल्लाह के रसूल नुरे मोहम्मदी मुस्तफा सलल्लाहो अलेहे वसल्लम कि योमे विलादत मनाई गई। वैसे तो इस मौके पर पुरे जहान में खुशियाँ मनाई जा रही हैं। क्यो की आमादे रसूल की खुशी मनाने का अपना अपना तरीका है। कोई कोरआन खानी करता है, तो कोई ईद मिलादुन नबी, तो कोई लग्गर खानी, तो कोई जुलुशे मोहम्मदी में शरीक होता है। लोग आका की यवमे विलादत मानाने में कोई कशर नहीं छोडते है।

इस जिले में भी यवमे विलादत के मौके पर मुसलमानों ने चश्म चिराग कर रसूल की खिदमत में नजराने अकीदत पेश करते हुए बाद नमाज़ फज्र सभी मुस्लमा एक जुट होकर नूरे मोहम्मदी का जुलूस बहुत ही अकीदत के साथ लेकर नातो खानी करते हुए निकलते है।

जुलूस में बड़े बड़े झंडे व गाड़ियों पर कई कई हॉर्न, साउंड बॉक्स लगा कर नातो का शिलसिला जरी रखते हैं। यह जुलुस अपने अपने मोहल्ले से उठकर शहर में गस्त करने के बाद देर रात लाला बाजार आकर इकठ्ठा होते हैं। और वहां पर देश व सारी कायनात के लिए दुवाये खैर करने के बाद समाप्त होता हैं।

वहीं शहर काजी क़ारी फरीद उद्दीन ने बताया जुलुसे मोहम्मदी मुस्लिम समाज के लोग अपने रसुल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की याद में नबी की पैदाइश की खुशी में निकालते है। और उनकी शान में नाते पाक का नज़राना पेश कर भाई चारे का पैगाम देते है। क्यो की हम उस नबी के मानने वाले है।

जिस नबी की ज़िंदगी का इतिहास रहा है भाई चारे का पैगाम देना। मेरे आका की ज़िन्दगी का अगर मुताला करेंगे तो मेरे आका ने न किसी को डाँटा न किसी को मारा न किसी को तकलीफ पहुंचाई।

बल्कि मेरे आका ने गरीब, बेसहारा, अनाथ, बेवाओं की दिल खोलकर के बिला भेदभाव के मदद की है। लेहाज़ा मुस्लिम समाज के लोग इस जुलुशे मोहम्मदी को प्यारे आका की मुहब्बत में निकालते है। मैं मुस्लिम समाज से यह अपील करता हूँ कि आका की तालीमात पर ज़िन्दगी गुज़रे।

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