उत्तर प्रदेश फतेहपुर जिले में ज्ञानी सिमरजीत सिंह ने बताया गुरु हरगोबिंद (जन्म 1595, वडाली में हुआ जो कि कीरतपुर, हिमालय के पास है गुरु हरगोविंद साहिब सिखों के छठे सिख गुरु है जिन्होंने एक मजबूत सिख सेना विकसित की और अपने पिता गुरु अर्जन देव जी के निर्देशों के अनुसार सिख धर्म को उसका सैन्य चरित्र दिया, गुरु हरगोबिंद के समय तक, सिख धर्म निष्क्रिय था। माना जाता है कि अपने उत्तराधिकार समारोह में हरगोबिंद ने दो तलवारें उठाई थीं, जो समुदाय के लौकिक ( मीरी ) और आध्यात्मिक ( पीरी ) प्रमुख के रूप में उनके दोहरे अधिकार का प्रतीक थीं। उन्होंने सैन्य प्रशिक्षण और मार्शल आर्ट के लिए भी बहुत समय समर्पित किया, एक विशेषज्ञ तलवारबाज, पहलवान और सवार बन गए। विरोध के बावजूद, गुरु हरगोबिंद ने अपनी सेना का निर्माण किया और अपने शहरों को मजबूत किया।
1609 में उन्होंने अमृतसर में अकाल तख्त (“भगवान का सिंहासन”), एक मंदिर और सभा भवन दोनों, जहाँ सिख राष्ट्र से संबंधित आध्यात्मिक और लौकिक दोनों तरह के मामले सुलझाए जा सकते थे। उन्होंने अमृतसर के पास एक किला बनवाया और उसका नाम लोहगढ़ रखा,उन्होंने बड़ी चतुराई से अपने अनुयायियों में लड़ने की इच्छाशक्ति पैदा की और उनमें उच्च मनोबल स्थापित किया। मुगल बादशाहजहाँगीर ने सिख शक्ति के निर्माण को एक खतरे के रूप में देखा और गुरु हरगोबिंद को ग्वालियर के किले में कैद कर दिया । 12 साल तक गुरु हरगोबिंद कैदी बनके रहे, लेकिन सिखों की उनके प्रति भक्ति और भी बढ़ गई। अंत में, सम्राट ने, जाहिर तौर पर मुगल शासन को चुनौती देने वाले भारतीय राज्यों के खिलाफ संभावित सहयोगियों के रूप में सिखों का पक्ष लेने की कोशिश की, और गुरु हरगोविंद साहिब को मुक्त कर दिया।
गुरु हरगोबिंद साहिब ने ने अपने पूर्व उग्रवादी मार्ग को जारी रखा, गुरु हरगोविन्द साहिब का प्रकाश पर्व प्रधान चरनजीत सिंह की अगुवाई में मनाया गया,जिसमें गुरुद्वारा साहिब में छ्वै गुरु साहिब के बारे में बताया उपरांत कीर्तन, अरदास और लंगर का आयोजन किया गया , इस मौके पर सेकेट्री परमजीत सिंह, जतिंदर पाल सिंह, कोषाध्यक्ष सुरिंदर सिंह,, उपप्रधान गुरमीत सिंह, नरेंद्र सिंह, संतोष सिंह , वरिंदर सिंह, सरनपाल सिंह, बंटी, परविंदर सिंह व महिलाओं में हरजीत कौर, हरविंदर कौर, मंजीत कौर, सतबीर कौर व वीर सिंह उपस्थित रहे।
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