उत्तर प्रदेश फतेहपुर जिला अस्पताल के मन कक्ष में आते हर महीने 8 से 10 मिर्गी रोगी। मिर्गी किसी तरह की छुआछूत या संक्रमण की बीमारी नहीं है, मिर्गी के मरीज की झाड़फूंक कराने की बजाय उसका विशेषज्ञ चिकित्सक से इलाज कराने की जरूरत होती है। दवा के अलावा इस बीमारी से ग्रसित लोगों को देखभाल और सहानुभूति की भी जरूरत होती है। लेकिन मिर्गी से जुड़े कुछ मिथक की वजह से लोग अक्सर इससे पीड़ित व्यक्ति से दूरी बना लेते हैं। हर साल लोगों में इसे लेकर जागरूकता लाने के मकसद से ही 17 नवंबर को नेशलन एपीलेप्सी डे मनाया जाता है। मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ सुनील भारतीय ने बताया कि मिर्गी एक मेडिकल समस्या है। जो नर्वस सिस्टम को प्रभावित करती है। रोगी स्वस्थ होगा या नहीं, यह रोग की स्थिति पर निर्भर करता है। हर रोगी में लक्षण अलग हो सकते हैं। कुछ मामलों में रोगी पूर्ण स्वस्थ हो जाता है, जबकि कुछ में बेहतर देखभाल व उपचार के जरिए रोग में नियंत्रण पाया जा सकता है।
एनसीडी (गैरसंचारी रोग) के नोडल अधिकारी डॉ. आरके वर्मा बताते हैं कि मिर्गी रोगी के साथ समाज और परिवार के सहयोग की जरूरत होती है। ऐसा माहौल विकसित करना चाहिए कि उसका मन अच्छा रहे। उन्होंने बताया कि मिर्गी रोगी के साथ सामान्य व्यवहार रखे। उन्होंने बताया की यदि किसी को मिर्गी रोग है तो उसको अकेला कभी न छोड़ें। मिर्गी आने पर घबराएं नहीं, भीड़ न लगाएं बल्कि शांति और खुला माहौल बनाएं। आसपास से वह वस्तुएं हटा दें, जिससे चोट लगने की आशंका हो। फिर सिर के नीचे तकिया रख दें और वह कपड़े भी हटा दें जिससे रोगी को सांस लेने में परेशानी हो रही हो। अब रोगी को बायीं या दायीं किसी भी करवट के बल लिटाएं। ध्यान रहे रोगी पीठ के बल नहीं लिटाएं। मुंह से निकलने वाली झाग (थूक) या उल्टी को साफ करते रहें। इससे सांस लेने में परेशानी नहीं होगी। स्थिति सामान्य होने पर यथाशीघ्र चिकित्सक से इलाज शुरू कराएं।जिला अस्पताल के मन कक्ष की क्लीनिकल साइकोलाजिस्ट डा0 रिंकी ने बताया कि मिर्गी को लोग अक्सर झाड फूक से जोड देते है जो कि गलत भावना है।
जागरूकता की कमी की वजह से मिर्गी का इलाज जादू टोना से कराने लगते है जबकि जिला अस्पताल में मिर्गी के इलाज की बेहतर व्यवस्था है। मिर्गी आने पर मरीज को मोजा जूता नहीं सुघाना चाहिये बल्कि तुरंत कुशल चिकित्सक के पास ले जाना चाहिये। जिला अस्पताल में हर महीने 8 से 10 मिर्गी रोगी आकर इलाज करा रहे है। मिर्गी के मरीज के साथ परिजनों की भी काउंसलिंग की जाती है। बोले मरीज मिल रहा लाभ — शहर के आबूनगर निवासी 46 वर्षीय संदीप ने बताया कि मार्ग दुर्घटना में घायल होने के बाद उन्हे मिर्गी की समस्या शुरू हो गई थी। अब घर से निकलते वक्त घबराहट होती है कि कहीं दौडे आने के कारण वह फिर न गिर जाये। इस पर मनकक्ष में उनकी काउंसलिंग की गई। इलाज के बाद अब काफी दिनों से दिक्कत नहीं हुई। इसी प्रकार सनगांव निवासी 39 वर्षीय स्मिता कहती हैं कि उन्हे अक्सर मिर्गी के दौरे पडते थे लेकिन मन कक्ष में डाक्टर से मिले और दवायें शुरू हुई साथ ही सावधानी बरतने से अब बहुत आराम मिला है। मिर्गी के लक्षण मरीज का अर्द्धमूच्छित हो जाना, मुंह से झाग या फेना आना, होंठ और चेहरा नीला पड़ जाना, जीभ का कट जाना, घबराहट, बेचौनी होना, सिरदर्द का होना। कारण मस्तिष्क की कमजोरी के कारण, मस्तिष्क में गंभीर चोट लगना, दिमागी बुखार आना। सावधानियां रोगी की तैराकी, ड्राइविंग, खतरनाक मशीनों पर काम करना से बचाव करना चाहिए, नियमित रुप से दवा सेवन और डाक्टर की सलाह लेना, खाली पेट न रहे, शराब आदि का सेवन न करें। सात से आठ घंटे की पर्याप्त नींद लें।
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