उत्तर प्रदेश फतेहपुर जिले की सदर कोतवाली क्षेत्र स्थित पीरनपुर मोहल्ले के रहने वाले मो0 नौशाद का बेटा मो0 हसन जन्म से ही सुन नहीं सकता था। निजी अस्पतालों में दिखाया लेकिन कोई आस नहीं दिखी। तभी जिला अस्पताल में लगे एक शिविर में बच्चे का बेरा टेस्ट (सुनने की क्षमता का पैरामीटर) कराया। नौशाद बताते हैं कि उन्होंने अपनी पांच वर्षीय बेटे को जिला अस्पताल में आकर दिखाया तब उन्हें पता चला राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत जो भी इलाज होगा वह निःशुल्क होगा। इससे मेरी चिंता थोड़ी कम हुई और कानपुर से आई टीम ने मुझे भरोसा दिलाया ऑपरेशन (कोकलियर इंप्लांट्स के लिए) के बाद बच्चे के अंदर धीरे-धीरे सुनने की क्षमता विकसित हो जाएगी। मैंने अपने बच्चे का ऑपरेशन 2021 में कराया था उसके बाद स्पीच थेरेपी भी हुई। इसका परिणाम यह हुआ कि हसन आज सुनने लगा है और धीरे-धीरे मुंह से बोल भी फूटने लगे हैं, इससे वह बेहद खुश हैं।
वही दूसरी तरफ बिंदकी कोतवाली क्षेत्र के जोनिहा कस्बा निवासी रेखा ने बताया कि सितंबर 2020 को मेरे चार वर्षीय बेटे मानस के कोकलियर इंप्लांट किया गया था। उसके बाद धीरे-धीरे स्पीच थेरेपी से बच्चे में सुनने की क्षमता विकसित हुई। और जब उसने पहली बार मुझे मां कहकर बुलाया उस पल को मैं कभी भूल नहीं सकती। रेखा ने बताया कि जिला अस्पताल जाकर बच्ची को जब पहली बार दिखाया तब मुझे भी उम्मीद नहीं थी। कि बच्ची के अंदर सुनने की क्षमता विकसित होगी लेकिन आरबीएसके के डॉक्टर विनोद सिंह ने मुझे इलाज का आश्वासन दिया। तब मैंने उनके सहयोग से कानपुर में हियरिंग क्लीनिक में बच्चे का ऑपरेशन कराया और धीरे-धीरे स्पीच थेरेपी से बच्ची में बोलने और सुनने की क्षमता विकसित हुई। मेरी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि मैं यह ऑपरेशन करा पाती इसलिए सरकार की ओर से मिली मदद मेरे लिए वरदान साबित हुई। यह कहानी हसन और मानस की सिर्फ नहीं है। ऐसे कई बच्चे हैं जो इस गंभीर समस्या से निजात पा रहे हैं।
मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ सुनील भारती ने बताया की जन्म से सुनने और बोलने की अक्षमता का असर आजीवन रह सकता है। जरा सी सतर्कता से बच्चे को इस समस्या से बचाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2018 से अब तक लगभग 16 बच्चों का कोकलियर इंप्लांट किया जा चुका है। शेष चिन्हित बच्चों का भी कोकलियर इंप्लांट जल्द कर दिया जाएगा। सीएमओ ने बताया कि आरबीएसके के द्वारा जन्मजात मूकबधिर बच्चों का निरूशुल्क उपचार कराया जाता है। उन्होंने बताया कि प्रति हजार में एक नवजात इस बीमारी का शिकार होता है। समय पर पहचान और तुरंत कॉकलियर इम्प्लांट सजर्री ही गूंगे व बहरेपन का सही इलाज है। देरी की सूरत में पीड़ित बच्चे के दिमाग के बोलने वाले हिस्से पर छह साल की उम्र के बाद सिर्फ देखकर समझने वाला दिमागी विकास हो पाता है। इसलिए जितनी जल्दी कॉकलियर इम्प्लांट सजर्री होगी, नतीजे उतने ही सकारात्मक होंगे।
क्या है कॉकलियर इम्प्लांट सर्जरी राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के डीआईईसी मैनेजर विजय सिंह ने बताया कि कॉकलियर एक बेहद संवेदनशील यंत्र (डिवाइस) होता है, जिसको ऑपरेशन द्वारा लगाया जाता है। मरीज को 2-3 दिन में अस्पताल से छुट्टी मिल जाती है। ऑपरेशन की सफलता डॉक्टर, अस्पताल की सुविधाओं तथा इम्प्लांट करने की सर्जिकल तकनीक पर ज्यादा निर्भर करती है।
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